आषाढ़ का एक दिन
आषाढ़ का एक दिन तीन अंकों में लिखा मोहन राकेश, हिंदी के प्रख्यात नाटककार के द्वारा लिखा गया नाटक है जिसमें कवि कालिदास, मल्लिका, उसकी मां अंबिका, विलोम, निक्षेप और और राज दुहिता कवि पत्नी इसके तक के प्रमुख पात्र हैं। मोहन राकेश ने नायक और ग्रामीन पहाड़ी अंचल के वातावरण को एक मनोवैज्ञानिक की भांति शब्दों में बांधकर प्रथम अंक लिखा है। प्रथम अंक में मल्लिका और अम्बिका के बीच संवाद, मल्लिका द्वारा विलोम और निक्षेप के तर्कों व सुझाव को बड़ी ही चतुराई से ठुकराना, कलह को आसानी से दूर कर लेना, मानो मोहन राकेश स्वयं मल्लिका के रूप में नाटक के प्रथम अंक में उपस्थित थे। अंत में कालिदास का उज्जैन जाना, गुप्त साम्राज्य के वैभव में चार चांद लगाना, कालिदास का संज्ञा परिवर्तन एवं राज दोहिता के साथ उनका परिणय बंधन साथ ही साथ मल्लिका से उनकी आभासी दूरी और राज वैभव एवं राज दोहिता प्रियंगु मंजरी का कवि कालिदास के मामा ग्राम आना, प्राकृतिक सौंदर्य कृत्रिम तरीकों से बटोरने का प्रयास करना नाटककार द्वारा इस अंक में अपने आसपास के वातावरण को हमेशा के लिए संचित कर लेने का सार्थक प्रयास हो।
नाटक का तीसरा अंक कश्मीर के विद्रोह, कवि कालिदास उपाख्य मातृ गुप्त का राजभवन से दूर होकर प्रकृति की ओर लौटने का प्रयास और पुनः कबि रूप में स्थापित करने का प्रयास, पुनः जड़ों की तरफ लौटने का प्रयास ऐसा लगता है जैसे मोहन राकेश भौतिक चकाचौंध से पुनः प्रकृति की गोद में लौटने का प्रयास कर रहे हो । चिड़िया दिन भर चाहे जितनी यात्रा कर ले लेकिन रात्रि को फिर अपने घोसले में आकर विश्राम करती है उसके लिए दुनिया की सारे आकर्षण उसके घोंसले के आकर्षण के सामने ठीगने दिखते हैं । नाटककार मोहन राकेश इसके माध्यम से जड़ों की तरफ लौटने का, आत्मा का आत्मा से जुड़ने का एक बड़ा ही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए नजर आते हैं।
आषाढ़ का एक दिन को हिंदी का आधुनिक नाटक कहलाने का श्रेय है । बड़े ही मनमोहक शिल्प सौंदर्य वाला यह नाटक है। नाटक भावना प्रधान है लेकिन भौतिक जगत से दूर नहीं जाता है। जीवन में संतुलन कैसे बनाई जाए यह नाटक इसके बारे में एक अच्छा मार्गदर्शक का काम करता है ।
राज कुमार जैसवाल
केंद्रीय विद्यालय